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एक विद्यार्थी की कश्मकश

एक विद्यार्थी की कश्मकश

टीचर ने क्लास में अभी-अभी सिखाया कि कैसे चार्ल्स डार्विन और उसकी विकासवाद की शिक्षा की वजह से विज्ञान के क्षेत्र में हमारी समझ बढ़ी है और इंसानों को अंधविश्वास से आज़ादी मिली है। अब वह विद्यार्थियों से इस विषय पर उनकी राय पूछती है। प्रशांत अपनी इस टीचर को बहुत मानता है, मगर इस वक्‍त वह कश्मकश है कि क्या जवाब दे। वह बहुत बेचैनी महसूस कर रहा है।

प्रशांत के लिए यह चुनाव की घड़ी है। उसके माता-पिता ने उसे सिखाया है कि धरती और सारे जीवित प्राणियों को परमेश्वर ने बनाया है। वे कहते हैं कि बाइबल में दिया सृष्टि का ब्यौरा भरोसेमंद है, जबकि विकासवाद सिर्फ एक सिद्धांत है, जिसका कोई सबूत नहीं। प्रशांत की टीचर और उसके माता-पिता सभी उसका भला चाहते हैं। प्रशांत दुविधा में है कि वह किसकी बात माने?

दुनिया-भर में हर साल हज़ारों विद्यार्थियों को स्कूल में इस तरह के हालात का सामना करना पड़ता है। ऐसे में प्रशांत और उसके जैसे दूसरे विद्यार्थियों को क्या करना चाहिए? आँख मूँदकर किसी की भी बात मान लेने के बजाय क्या आपको नहीं लगता कि उन्हें सृष्टि और विकासवाद दोनों के सबूतों की जाँच करनी चाहिए? इसके बाद उन्हें खुद फैसला करना चाहिए कि वे किस पर विश्वास करेंगे।

बाइबल भी खबरदार करती है कि हमें आँख मूँदकर किसी की भी बात पर विश्वास नहीं कर लेना चाहिए। बाइबल कहती है, “भोला तो हर एक बात को सच मानता है, परन्तु चतुर मनुष्य समझ बूझकर चलता है।” (नीतिवचन 14:15) बाइबल मसीहियों को बढ़ावा देती है कि वे अपनी “सोचने-समझने की शक्‍ति” का इस्तेमाल करें और जो कुछ उन्हें सिखाया जाता है उसकी जाँच-परख करने के बाद ही उस पर यकीन करें।​—रोमियों 12:1, 2.

यह ब्रोशर उन धार्मिक समूहों के लिए तैयार नहीं किया गया है जो स्कूलों में यह सिखाना चाहते हैं कि सृष्टि की रचना परमेश्वर ने की है। दरअसल इस ब्रोशर का मकसद उन लोगों के दावों की जाँच करना है, जो कहते हैं कि जीवन अचानक शुरू हो गया और बाइबल में दिया सृष्टि का ब्यौरा सिर्फ एक मनगढ़ंत कहानी है।

इस ब्रोशर में हम जीवन के मूल तत्व कोशिका पर ध्यान देंगे। ये कोशिकाएँ किस दिलचस्प तरीके से बनती हैं, इस पर कुछ रौशनी डाली जाएगी। और विकासवाद का सिद्धांत जिन अनुमानों पर आधारित है, उन पर भी जाँच करने के लिए आपसे कुछ सवाल पूछे जाएँगे।

आज नहीं तो कल, हम सभी इस सवाल से रू-बरू होंगे, क्या जीवन की सृष्टि की गयी या यह इत्तफाक से यानी अपने आप आ गया? आपने शायद इस बारे में गंभीरता से सोचा होगा। यह ब्रोशर ऐसे चंद सबूत पेश करेगा, जिनकी बिनाह पर कई लोग यह विश्वास कर पाए कि जीवन की सृष्टि की गयी थी।