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सवाल 5

क्या बाइबल पर भरोसा करना सही है?

क्या बाइबल पर भरोसा करना सही है?

क्या कभी ऐसा हुआ है, किसी को मिलने से पहले ही आपने उसके बारे में गलत राय कायम कर ली? शायद आपने लोगों को उसकी बुराई करते सुना होगा और मन में उसकी एक गलत तसवीर बना ली। लेकिन जब आप उससे मिले और उसे जानने लगे, तो आपको पता चला कि उसके बारे में झूठी बात फैलायी गयी थी। कई लोगों ने बाइबल के बारे में भी यह सच पाया है।

ज़्यादातर पढ़े-लिखे लोग बाइबल के बारे में गलत राय कायम कर लेते हैं। क्या आप इसकी वजह जानते हैं? बाइबल के बारे में लोगों की बात सुनकर अकसर लगता है कि इसमें लिखी बातें बेतुकी, विज्ञान के खिलाफ या सरासर गलत हैं। क्या हो सकता है कि बाइबल की गलत तसवीर पेश की गयी हो?

इस ब्रोशर को पढ़ते वक्‍त क्या आपको यह जानकर ताज्जुब हुआ कि बाइबल जो भी बताती है, वह विज्ञान के खिलाफ नहीं है? कई लोगों को वाकई ताज्जुब हुआ। उन्हें यह जानकर भी हैरानी हुई कि कई धर्म कुछ बातों के बारे में दावा करते हैं कि बाइबल ऐसा कहती है, जबकि उनका दावा झूठा होता है। उदाहरण के लिए, कुछ कहते हैं कि बाइबल के हिसाब से परमेश्वर ने इस विश्व और सारे प्राणियों की सृष्टि 6 दिनों में की, जिसका हर दिन 24 घंटे का था। मगर यह सही नहीं है। बाइबल में ऐसा कुछ नहीं लिखा जिससे लगे कि वैज्ञानिक इस विश्व और धरती की सृष्टि के समय के बारे में जो अनुमान लगाते हैं, वह गलत है। *

इतना ही नहीं, परमेश्वर ने धरती पर जीवन की शुरूआत कैसे की, इस बारे में बाइबल थोड़े शब्दों में जो बताती है, उससे वैज्ञानिकों को खोजबीन करने और सिद्धांत बनाने के काफी मौके मिलते हैं। बाइबल कहती है कि परमेश्वर ने ही हर तरह का जीवन बनाया और यह भी कि सारे प्राणियों को “एक एक की जाति के अनुसार” बनाया। (उत्पत्ति 1:11, 21, 24) यह बात शायद कुछ वैज्ञानिक सिद्धांतों से मेल न खाए मगर विज्ञान जिन सच्चाइयों को पेश करता है, उनसे यह पूरी तरह मेल खाती है। वैज्ञानिक नए सिद्धांत बनाते हैं और पुराने सिद्धांतों को दरकिनार कर देते हैं, मगर सच्चाई हमेशा बनी रहती है।

लेकिन बहुत-से लोग बाइबल की खोज करने से कतराते हैं क्योंकि धर्म से उन्हें निराशा हाथ लगी है। जब वे किसी धार्मिक संगठन को देखते हैं, तो वहाँ उन्हें पाखंड, भ्रष्टाचार और खून-खराबा ही नज़र आता है। जो लोग बाइबल को मानने का दावा करते हैं, उनके कामों को देखकर क्या बाइबल के बारे में गलत राय कायम करना सही होगा? कई भले वैज्ञानिक यह देखकर काँप उठते हैं कि कुछ कट्टरपंथी कैसे विकासवाद के सिद्धांत का सहारा लेकर अपनी जाति को बेहतर साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। क्या इस आधार पर विकासवाद के सिद्धांत को झूठा करार देना सही होगा? बेहतर तो यही होगा कि हम उसके सिद्धांतों के दावों की खोज करें और मौजूद सबूतों से उनकी तुलना करें।

हम चाहते हैं कि बाइबल के मामले में भी आप ऐसा करें। आपको यह जानकार खुशी होगी और ताज्जुब भी कि बाइबल की शिक्षाएँ ज़्यादातर धार्मिक संगठनों से बहुत अलग हैं। युद्ध और जातीय झगड़ों का बढ़ावा देने के बजाय बाइबल सिखाती है कि परमेश्वर के सेवकों को युद्धों से परे रहना चाहिए, यहाँ तक कि किसी से नफरत भी नहीं करनी चाहिए क्योंकि नफरत से हिंसा की आग भड़कती है। (यशायाह 2:2-4; मत्ती 5:43, 44; 26:52) बाइबल न तो कट्टरपंथी रवैये को और न ही अंधविश्वास को बढ़ावा देती है। इसके बजाय यह सिखाती है कि सच्चे विश्वास की बुनियाद सबूतों पर टिकी होनी चाहिए और परमेश्वर की सेवा भावनाओं में बहकर नहीं, बल्कि सोच-समझकर की जानी चाहिए। (रोमियों 12:1; इब्रानियों 11:1) अपनी जिज्ञासा को दबाने के बजाय बाइबल हमें बढ़ावा देती है कि अपने दिल में उठनेवाले सबसे दिलचस्प और चुनौती-भरे सवालों के जवाब हम ज़रूर खोजें।

उदाहरण के लिए, क्या कभी आपने सोचा है, ‘अगर परमेश्वर है तो वह बुरे कामों को रोकता क्यों नहीं?’ बाइबल इस सवाल का, साथ ही दूसरे सवालों का सही-सही जवाब देती है। * हम आपसे आग्रह करते हैं कि आप बाइबल से सच्चाई की खोज में लगे रहें। आपको ऐसे जवाब मिलेंगे, जो दिलचस्प और तर्कसंगत होंगे, जिनसे आपकी आँखें खुल जाएँगी, साथ ही वे ठोस सबूतों के आधार पर होंगे। इसमें कोई शक नहीं कि बाइबल सोच-समझकर लिखी एक किताब है।

^ पैरा. 5 ज़्यादा जानकारी के लिए क्या जीवन की सृष्टि की गयी? (अँग्रेज़ी) ब्रोशर देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

^ पैरा. 9 बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब का अध्याय 11 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।