रोमियों के नाम चिट्ठी 15:1-33

15  लेकिन हम जो विश्‍वास में मज़बूत हैं, हमें चाहिए कि हम उनकी कमज़ोरियाँ सहें जो मज़बूत नहीं हैं,+ न कि खुद को खुश करने की सोचें।+  हरेक अपने पड़ोसी को खुश करे जिससे पड़ोसी का भला हो और वह मज़बूत हो।+  इसलिए कि मसीह ने भी खुद को खुश नहीं किया+ ठीक जैसा लिखा है, “जो तेरी निंदा करते हैं, उनकी निंदा-भरी बातें मुझ पर आ पड़ी हैं।”+  जो बातें पहले से लिखी गयी थीं, वे इसलिए लिखी गयीं कि हम उनसे सीखें+ और शास्त्र से हमें धीरज धरने में मदद मिले+ और हम दिलासा पाएँ ताकि हमारे पास आशा हो।+  धीरज और दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर तुम्हें ऐसी आशीष दे कि तुम्हारी सोच और तुम्हारा नज़रिया मसीह यीशु जैसा हो  ताकि तुम सब एकता में रहकर+ और एक आवाज़ में* हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्‍वर और पिता की महिमा करो।  इसलिए जैसे मसीह ने हमें अपनाया* है,+ तुम भी एक-दूसरे को अपना लो*+ ताकि परमेश्‍वर की महिमा हो।  मैं कहता हूँ कि मसीह उनका सेवक बना जिनका खतना हुआ था+ ताकि यह गवाही दे कि परमेश्‍वर सच्चा है और परमेश्‍वर ने उनके पुरखों से जो वादे किए थे+ वे भरोसे के लायक हैं  और इसलिए भी कि गैर-यहूदी राष्ट्र परमेश्‍वर की दया के लिए उसकी महिमा करें।+ ठीक जैसा लिखा है, “इसीलिए मैं राष्ट्रों के बीच सरेआम तेरी बड़ाई करूँगा और तेरे नाम की तारीफ में गीत गाऊँगा।”+ 10  फिर वह कहता है, “राष्ट्रो, परमेश्‍वर की प्रजा के साथ खुशियाँ मनाओ।”+ 11  और फिर कहता है, “सब राष्ट्रो, यहोवा* की तारीफ करो और देश-देश के लोग उसका गुणगान करें।”+ 12  और फिर यशायाह कहता है, “यिशै की जड़ प्रकट होगी+ यानी वह जो राष्ट्रों पर राज करने के लिए खड़ा होगा+ और राष्ट्र उस पर आशा रखेंगे।”+ 13  मेरी दुआ है कि आशा देनेवाला परमेश्‍वर तुम्हें भरपूर खुशी और शांति दे क्योंकि तुमने उस पर भरोसा रखा है और इस तरह पवित्र शक्‍ति की ताकत से तुम्हारी आशा पक्की होती जाए।+ 14  भाइयो, मुझे तुम्हारे बारे में यकीन है कि तुम भलाई और ज्ञान से भरपूर हो और एक-दूसरे को समझाने* के काबिल हो। 15  फिर भी कुछ बातों के बारे में मैंने तुम्हें सीधे-सीधे लिखा है ताकि तुम्हें उनके बारे में याद दिला सकूँ, क्योंकि परमेश्‍वर ने मुझ पर महा-कृपा की है। 16  मुझ पर यह महा-कृपा इसलिए की गयी ताकि मैं गैर-यहूदी राष्ट्रों के लिए मसीह यीशु का एक जन-सेवक ठहरूँ।+ मैं परमेश्‍वर की खुशखबरी सुनाने का पवित्र काम करता हूँ+ ताकि गैर-यहूदी राष्ट्र एक ऐसी भेंट के तौर पर परमेश्‍वर को चढ़ाए जाएँ जो उसे स्वीकार हो और पवित्र शक्‍ति से पवित्र ठहरायी गयी हो। 17  इसलिए परमेश्‍वर की सेवा से जुड़ी बातों के बारे में, मैं मसीह यीशु का चेला होने में गर्व करता हूँ। 18  जो काम मसीह ने मेरे ज़रिए किए हैं, उनके बारे में बताने के अलावा मैं कुछ और कहने की जुर्रत नहीं करूँगा। मसीह ने मेरे ज़रिए काम किया कि गैर-यहूदी राष्ट्रों को आज्ञाकारी बनाए। उसने मेरे वचनों और कामों के ज़रिए 19  और चमत्कारों और आश्‍चर्य के कामों की ताकत से+ और पवित्र शक्‍ति की ताकत से ऐसा किया है। मैंने यरूशलेम से लेकर इल्लुरिकुम तक चारों तरफ मसीह के बारे में खुशखबरी का अच्छी तरह प्रचार किया है।+ 20  वाकई, इस तरह मैंने ठान लिया है कि मैं ऐसे इलाकों में खुशखबरी न सुनाऊँ जहाँ मसीह के नाम का प्रचार पहले ही हो चुका है ताकि मैं किसी दूसरे की डाली हुई नींव पर इमारत न खड़ी करूँ। 21  इसके बजाय, मैंने वैसा ही करने का लक्ष्य रखा है जैसा लिखा है, “जिन्हें उसके बारे में कभी नहीं बताया गया, वे देखेंगे और जिन्होंने नहीं सुना वे समझेंगे।”+ 22  इसलिए मुझे तुम्हारे पास आने से बहुत बार रोका भी गया। 23  मगर अब इन इलाकों में ऐसी कोई जगह नहीं बची जहाँ प्रचार न हुआ हो और मैं कई* सालों से तुम्हारे पास आने के लिए तरस भी रहा था। 24  इसलिए मैं उम्मीद करता हूँ कि जब मैं स्पेन के सफर पर निकलूँगा तो रास्ते में तुमसे मिलूँगा और कुछ समय के लिए तुम्हारी संगति का आनंद लूँगा, फिर तुम कुछ दूर तक मुझे छोड़ने आओगे। 25  लेकिन अभी मैं पवित्र जनों की सेवा करने के लिए यरूशलेम के सफर पर जानेवाला हूँ।+ 26  यरूशलेम के पवित्र जनों में जो गरीब हैं उनके लिए मकिदुनिया और अखाया के रहनेवालों ने अपनी संपत्ति में से खुशी-खुशी दान दिया है।+ 27  सच है कि उन्हें देने में खुशी मिली और देखा जाए तो वे पवित्र जनों के कर्ज़दार थे। क्योंकि पवित्र जनों ने परमेश्‍वर से जो पाया था वह गैर-यहूदी राष्ट्रों को भी दिया, इसलिए इनका भी फर्ज़ बनता है कि वे पवित्र जनों की खाने-पहनने की ज़रूरतों के लिए दान देकर उनकी सेवा करें।+ 28  इसलिए मैं यह काम पूरा करने और उन तक यह दान पहुँचाने के बाद, तुम्हारे यहाँ से होता हुआ स्पेन जाऊँगा। 29  और मैं जानता हूँ कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँगा, तो मसीह की तरफ से भरपूर आशीष लेकर आऊँगा। 30  अब मेरे भाइयो, हमारे प्रभु यीशु मसीह में तुम्हें जो विश्‍वास है और पवित्र शक्‍ति ने तुममें जो प्यार पैदा किया है, उस वजह से मैं तुम्हें बढ़ावा देता हूँ कि मेरी तरह तुम भी दिलो-जान से मेरे लिए परमेश्‍वर से प्रार्थना करते रहो+ 31  कि परमेश्‍वर मुझे यहूदिया के अविश्‍वासियों के हाथों में पड़ने से बचाए+ और यरूशलेम के पवित्र जन मेरी सेवा स्वीकार करें+ 32  ताकि जब मैं परमेश्‍वर की मरज़ी से खुशी-खुशी तुम्हारे पास आऊँ, तो तुम्हारी संगति से तरो-ताज़ा हो जाऊँ। 33  दुआ करता हूँ कि शांति देनेवाला परमेश्‍वर तुम सबके साथ रहे।+ आमीन।

कई फुटनोट

शा., “एक मुँह से।”
या “का स्वागत करो।”
या “हमारा स्वागत किया।”
अति. क5 देखें।
या “सिखाने।”
या शायद, “कुछ।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो