भजन 55:1-23
दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत: यह गीत तारोंवाले बाजे बजाकर गाया जाए। मश्कील।*
55 हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुन,+मेरी दया की बिनती अनसुनी न कर।*+
2 मुझ पर ध्यान दे और मुझे जवाब दे,+मैं चिंता के मारे बेचैन हूँ,+दुख से बेहाल हूँ,
3 क्योंकि दुश्मन चुभनेवाली बातें कहते हैं,दुष्ट मुझ पर दबाव डालते हैं।
एक-के-बाद-एक मुसीबत खड़ी करते हैं।
वे गुस्से से भरे हुए हैं और मन में दुश्मनी पालते हैं।+
4 मेरा दिल दर्द से तड़प रहा है,+मौत का डर मुझ पर हावी हो गया है।+
5 मैं डर से काँप रहा हूँ, थरथरा रहा हूँ।
6 रह-रहकर एक ही खयाल आता है,“काश, फाख्ते की तरह मेरे भी पर होते!
मैं उड़कर किसी महफूज़ जगह जा बसता।
7 मैं कहीं दूर भाग जाता।+
किसी वीराने में बसेरा करता।+ (सेला )
8 मैं इस तेज़ आँधी और भयानक तूफान से बचकरकिसी महफूज़ जगह भाग जाता।”
9 हे यहोवा, उन्हें उलझन में डाल दे,उनकी चालें नाकाम कर दे,*+क्योंकि मैंने शहर में खून-खराबा और झगड़े देखे हैं।
10 रात-दिन वे शहरपनाह के ऊपर घूमते रहते हैं,शहर में नफरत फैली है, दंगे हो रहे हैं।+
11 बीच शहर में तबाही है,ज़ुल्म और छल उसके चौक से कभी दूर नहीं होते।+
12 मुझ पर ताना कसनेवाला अगर मेरा दुश्मन होता,+तो मैं किसी तरह सह लेता।
मेरे खिलाफ उठनेवाला अगर मेरा बैरी होता,तो मैं उससे छिप जाता।
13 मगर वह तो तू है, मेरे जैसा आदमी,*+मेरा अपना साथी जिसे मैं अच्छी तरह जानता हूँ।+
14 हमने दोस्ती के कितने मीठे पल बिताए थे,भीड़ के साथ हम परमेश्वर के भवन में जाया करते थे।
15 मेरे दुश्मनों पर मुसीबत टूट पड़े!+
वे ज़िंदा ही कब्र में चले जाएँ,क्योंकि उनके बीच और उनके अंदर बुराई बसी है।
16 मगर मैं तो यहोवा को पुकारूँगाऔर वह मुझे बचाएगा।+
17 शाम, सुबह, दोपहर, हर वक्त मैं चिंता में डूबा कराहता रहता हूँ*+और परमेश्वर मेरी सुनता है।+
18 मुझसे लड़नेवाले बेहिसाब हैं,मगर परमेश्वर मुझे उनसे छुड़ाएगा और मेरे मन को चैन देगा।+
19 परमेश्वर, जो युग-युग से अपनी राजगद्दी पर विराजमान है,+मेरी दुहाई सुनेगा और उनके खिलाफ कार्रवाई करेगा।+ (सेला )
उन्हें बदलना गवारा नहीं,वे परमेश्वर का डर नहीं मानते।+
20 उसने* अपने ही दोस्तों पर हमला किया,+उसने अपना करार तोड़ दिया।+
21 उसकी बातें मक्खन से भी चिकनी हैं,+मगर उसके दिल में फसाद भरा है।
उसके बोल तेल से भी चिकने हैं,मगर पैनी तलवार की तरह काटते हैं।+
22 अपना सारा बोझ यहोवा पर डाल दे,+वह तुझे सँभालेगा।+
वह नेक जन को कभी गिरने* नहीं देगा।+
23 मगर हे परमेश्वर, तू उन दुष्टों को गहरी खाई में गिरा देगा।+
वे खून के दोषी और धोखेबाज़ हैं,वे आधी ज़िंदगी भी नहीं जी पाएँगे,+मगर मैं तो तुझ पर भरोसा रखूँगा।
कई फुटनोट
^ या “जब मैं मदद के लिए प्रार्थना करूँ तो तू छिप न जाना।”
^ या “उनकी भाषा में गड़बड़ी डाल दे।”
^ या “मेरी बराबरी का आदमी।”
^ या “डूबा शोर मचाता हूँ।”
^ यानी वह जो पहले उसका दोस्त था और जिसका ज़िक्र आय. 13 और 14 में किया गया है।
^ या “डगमगाने; लड़खड़ाने।”