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शादियाँ जो परमेश्‍वर और इंसान की नज़र में आदर की बात समझी जाएँ

शादियाँ जो परमेश्‍वर और इंसान की नज़र में आदर की बात समझी जाएँ

शादियाँ जो परमेश्‍वर और इंसान की नज़र में आदर की बात समझी जाएँ

“काना में किसी का ब्याह था, . . . यीशु और उसके चेले भी उस ब्याह में नेवते गए थे।”—यूहन्‍ना 2:1, 2.

1. काना में यीशु के बारे में दिया ब्यौरा किस बात की तरफ हमारा ध्यान खींचता है?

 यीशु, उसकी माँ और उसके कुछ चेले शादी को आदर की बात समझते थे। वे जानते थे कि ऐसी शादियों से परमेश्‍वर के लोगों को कितनी खुशी मिलती है। मसीह यीशु ने तो एक शादी में अपना सबसे पहला चमत्कार करके उस शादी को यादगार बनाया था और उस मौके की खुशी बढ़ायी थी। (यूहन्‍ना 2:1-11) आपको भी शायद ऐसे मसीहियों की शादियों में हाज़िर होकर खुशी मिली होगी, जो पति-पत्नी बनकर परमेश्‍वर की सेवा करना चाहते हैं। या हो सकता है, आप अपनी शादी के बारे में ऐसी उम्मीद करें। या फिर आप, अपने दोस्त की शादी को सफल बनाने में उसकी मदद करना चाहते हों। मगर शादी को सफल बनाने के लिए क्या किया जा सकता है?

2. बाइबल, शादियों के बारे में क्या जानकारी देती है?

2 मसीहियों ने पाया है कि परमेश्‍वर का प्रेरित वचन, बाइबल ऐसे स्त्री-पुरुषों को बहुत फायदेमंद सलाह देती है, जो शादी करने की सोचते हैं। (2 तीमुथियुस 3:16, 17) यह सच है कि बाइबल बारीकी से जानकारी नहीं देती कि मसीही शादी कैसे की जानी चाहिए। और यह लाज़िमी भी है, क्योंकि हर देश और हर युग के रिवाज़ और कानूनी माँगें अलग-अलग होती हैं। मिसाल के लिए, प्राचीन इस्राएल में शादी के लिए कोई कानूनी माँग पूरी नहीं करनी होती थी। शादी के दिन, दूल्हा अपनी दुलहन को अपने या अपने पिता के घर ले आता था। (उत्पत्ति 24:67; यशायाह 61:10; मत्ती 1:24) इसे लोग शादी मानते थे। इसके लिए, दूल्हा-दुलहन को कोई कानूनी माँगें पूरी नहीं करनी पड़ती थीं, जैसा कि आज करना ज़रूरी होता है।

3. यीशु ने काना में किस मौके की खुशी बढ़ायी थी?

3 दूल्हे का दुलहन को अपने घर ले जाना, इस्राएलियों की नज़र में शादी थी। इसके बाद, उन इस्राएलियों को शादी की दावत में बुलाया जाता था। यूहन्‍ना 2:1 कहता है: “काना में किसी का ब्याह था . . .।” मगर मूल-भाषा में “ब्याह” के लिए जो शब्द इस्तेमाल किया गया है, उसका अनुवाद, “शादी की दावत” या “शादी का भोज” भी किया जा सकता है। * यूहन्‍ना की किताब में दिया ब्यौरा साफ दिखाता है कि यीशु, यहूदी शादी की दावत में न सिर्फ हाज़िर हुआ, बल्कि उसने उस मौके की खुशी भी बढ़ायी। मगर गौर करने लायक बात यह है कि यीशु के ज़माने की शादियों और आज की शादियों में फर्क है।

4. कुछ मसीही किस तरह शादी करना पसंद करते हैं, और क्यों?

4 आज कई देशों में, शादी करने से पहले मसीहियों को कुछ कानूनी माँगें पूरी करनी होती हैं। इसके बाद, वे किसी भी तरीके से शादी कर सकते हैं जो सरकार की नज़र में कानूनी हो। एक जज या मेयर, या फिर यहोवा का एक ऐसा साक्षी उनकी शादी करवा सकता है, जिसे सरकार की तरफ से ऐसा करने का अधिकार मिला हो। कुछ मसीही इस तरह शादी करना पसंद करते हैं। और वे अपने कुछ रिश्‍तेदारों या मसीही दोस्तों को या तो कानूनी गवाहों के तौर पर हाज़िर होने के लिए बुलाते हैं या फिर इस अहम मौके पर उनकी खुशी में शरीक होने के लिए। (यिर्मयाह 33:11; यूहन्‍ना 3:29) दूसरे मसीही शायद इतनी बड़ी दावत रखना पसंद न करें, जिसके लिए काफी योजना बनानी पड़े और बहुत खर्चा हो। इसके बजाय, वे रिश्‍तेदारों और करीबी दोस्तों के लिए एक छोटी-सी दावत रखना पसंद करें। इस मामले में हमारी पसंद चाहे जो भी हो, मगर हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि दूसरे प्रौढ़ मसीहियों का नज़रिया हमसे अलग हो सकता है।—रोमियों 14:3,4.

5. कई मसीही अपनी शादी में बाइबल पर आधारित भाषण रखने का चुनाव क्यों करते हैं, और भाषण में क्या बताया जाता है?

5 मसीही जोड़े जानते हैं कि शादी की शुरूआत यहोवा ने की है और उसने अपने वचन में शादीशुदा ज़िंदगी को सफल और सुखी बनाने के लिए बुद्धि-भरी सलाह भी दी है। इसलिए कई जोड़े अपनी शादी में बाइबल पर आधारित भाषण रखने का चुनाव करते हैं। * (उत्पत्ति 2:22-24; मरकुस 10:6-9; इफिसियों 5:22-33) इतना ही नहीं, ज़्यादातर जोड़े चाहते हैं कि उनके मसीही दोस्त और रिश्‍तेदार इस मौके पर हाज़िर होकर उनकी खुशी में शरीक हों। मगर सवाल यह है कि हमें शादी से जुड़ी तरह-तरह की कानूनी माँगों, तरीकों, यहाँ तक कि किसी इलाके के जाने-माने रिवाज़ों को किस नज़र से देखना चाहिए? यह लेख इस बात पर चर्चा करेगा कि अलग-अलग देशों में शादियाँ कैसे होती हैं। यहाँ बताए कुछ तरीके शायद आपके लिए नए हों या आपके इलाके में लागू न हों। मगर फिर भी चर्चा के दौरान, आप शादी के बारे में ऐसे खास सिद्धांतों या पहलुओं पर ध्यान दे सकते हैं, जो परमेश्‍वर के सेवकों के लिए ज़रूरी हैं।

कानूनी तौर पर की गयी शादियाँ—आदर की बात समझी जाती हैं

6, 7. हमें शादी के बारे में सरकार के दिए कानूनों को क्यों मानना चाहिए, और यह हम कैसे कर सकते हैं?

6 शादी की शुरूआत यहोवा ने की है और उसी ने इस बंधन को पवित्र ठहराया है। मगर कुछ हद तक इंसानी सरकारों को यह बताने का हक है कि शादी करने के लिए क्या माँगें पूरी करना ज़रूरी है। उन्हें ऐसा करने का हक है, क्योंकि यीशु ने कहा था: “जो कैसर का है वह कैसर को, और जो परमेश्‍वर का है परमेश्‍वर को दो।” (मरकुस 12:17) उसी तरह पौलुस ने भी कहा: “हर एक व्यक्‍ति प्रधान अधिकारियों के आधीन रहे; क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्‍वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्‍वर के ठहराए हुए हैं।”—रोमियों 13:1; तीतुस 3:1.

7 ज़्यादातर देशो में कैसर, या सरकार तय करती है कि कौन शादी कर सकता है। इसलिए जब दो मसीही, जिन पर बाइबल के उसूलों के मुताबिक शादी करने के लिए कोई बंदिशें नहीं हैं, यह कदम उठाने का चुनाव करते हैं, तो वे देश के कानून के मुताबिक शादी करते हैं। इसके लिए शायद उन्हें लाइसेंस लेनी पड़े, सरकार के ठहराए अधिकारी से शादी करवानी पड़े, और शादी हो जाने के बाद उसे पंजीकृत भी करवाना पड़े। बाइबल के ज़माने में, जब कैसर औगूस्तुस ने आज्ञा दी कि सारे जगत के लोगों के “नाम लिखे जाएं” या पंजीकृत किए जाएँ, तो मरियम और यूसुफ अपना ‘नाम लिखवाने’ के लिए बैतलहम नगर गए।—लूका 2:1-5.

8. यहोवा के साक्षी क्या नहीं करते, और क्यों?

8 जब मसीही स्त्री-पुरुष कानून के मुताबिक शादी करते हैं, तो परमेश्‍वर की नज़र में उनकी शादी जायज़ ठहरती है। इसलिए, यहोवा के साक्षी एक-से-ज़्यादा कानूनी तरीकों से शादी नहीं करते। और ना ही वे अपनी शादी की 25वीं या 50वीं सालगिरह पर दोबारा शादी की शपथ लेते हैं। (मत्ती 5:37) (कुछ चर्च ऐसी शादियों को नहीं मानते जो कचहरी में या रिवाज़ के मुताबिक की जाती है, मगर जो कानूनी तौर पर जायज़ हैं। वे कहते हैं कि जब तक पादरी, शादी की रस्मों को पूरा नहीं करता या दूल्हा-दुलहन को पति-पत्नी करार नहीं देता, तब तक उसे शादी नहीं माना जा सकता है।) कुछ देशों में सरकार, यहोवा के एक साक्षी को शादियाँ करवाने का अधिकार देती है। अगर यह मुमकिन हो, तो वह भाई राज्य घर में ही शादी के भाषण के दौरान दूल्हा-दुलहन की शादी करवा सकता है। राज्य घर, सच्ची उपासना की जगह है और यहोवा परमेश्‍वर के ठहराए शादी के इंतज़ाम के बारे में भाषण देने की बिलकुल सही जगह है।

9. (क) कानूनी शादी करने के बाद, एक मसीही जोड़ा क्या कर सकता है? (ख) शादी की तैयारियों में प्राचीन कैसे शामिल हो सकते हैं?

9 कुछ और देशों में कानून यह माँग करता है कि एक जोड़ा या तो सरकारी कार्यालय में शादी करे या किसी सरकारी अधिकारी के सामने। मसीही अकसर इस तरह शादी करने के बाद उसी दिन या उसके अगले दिन अपनी शादी का भाषण राज्य घर में रखते हैं। (शादीशुदा जोड़ों को कानूनी शादी करने के बाद, बाइबल पर आधारित भाषण के लिए ज़्यादा दिन नहीं रुकना चाहिए, क्योंकि वे परमेश्‍वर और इंसानों की नज़र में, जिसमें मसीही कलीसिया भी शामिल है, शादीशुदा हैं।) अगर एक जोड़ा कानूनी शादी करने के बाद किसी राज्य घर में भाषण का इंतज़ाम करना चाहता है, तो उन्हें पहले वहाँ की कलीसिया की सेवा समिति के प्राचीनों से इसकी इजाज़त लेनी चाहिए। प्राचीनों को चाहिए कि वे इस बात को पक्का कर लें कि इस जोड़े का कलीसिया में अच्छा नाम है। इसके अलावा, उन्हें यह भी देखना चाहिए कि शादी कहीं ऐसे समय पर न रखा गया हो, जिससे हफ्ते की सभाओं या राज्य घर के दूसरे कार्यक्रमों में रुकावट पैदा हो जाए। (1 कुरिन्थियों 14:33, 40) उन्हें राज्य घर की सजावट से जुड़ी बातों पर भी ध्यान देना चाहिए और यह तय करना चाहिए कि राज्य घर के इस्तेमाल की घोषणा सभा में की जानी चाहिए या नहीं।

10. अगर कानूनी शादी करना ज़रूरी होता है, तो इसका भाषण पर क्या असर पड़ेगा?

10 शादी में भाषण देनेवाला प्राचीन, स्नेह और गरिमा के साथ भाषण देने और आध्यात्मिक तौर पर हाज़िर लोगों का हौसला बढ़ाने की कोशिश करेगा। अगर जोड़ा कानूनी शादी कर चुका है, तो प्राचीन अपने भाषण में बताएगा कि देश के कानून के मुताबिक उनकी शादी हो चुकी है। अगर जोड़े ने कानूनी शादी के वक्‍त शादी की शपथ नहीं ली थी, तो वे भाषण के दौरान ऐसा कर सकते हैं। * लेकिन अगर कानूनी शादी के वक्‍त उन्होंने शपथ ले ली थी, मगर फिर भी वे यहोवा और कलीसिया के सामने यह शपथ लेना चाहते हैं, तो वे ऐसा कर सकते हैं। उन्हें शपथ के शब्दों को भूतकाल में दोहराना चाहिए, ताकि हाज़िर लोगों को पता चल जाए कि उन्हें पति-पत्नी के नाते कुछ वक्‍त पहले ‘जोड़ा गया’ है और वे शादी की शपथ ले चुके हैं।—मत्ती 19:6; 22:21.

11. कुछ जगहों पर शादी करने के लिए एक जोड़े को क्या करना होता है, और इससे शादी के भाषण पर क्या असर पड़ता है?

11 कुछ जगहों पर कानून ऐसी कोई माँग नहीं करता कि जोड़ा, कोई रस्म निभाकर शादी करे। यहाँ तक कि उन्हें किसी सरकारी रजिस्ट्रार से अपनी शादी करवाने की भी ज़रूरत नहीं है। शादी करने के लिए उन्हें सिर्फ एक फॉर्म भरना पड़ता है और उस पर दस्तखत करके किसी अधिकारी को देना पड़ता है। इसके बाद उस फॉर्म को सरकारी रिकॉर्ड में रख दिया जाता है। इस तरह, वे समाज की नज़र में पति-पत्नी कहलाते हैं और फॉर्म पर दस्तखत करने की तारीख उनकी शादी की तारीख ठहरती है। जैसा पहले बताया गया था, यह जोड़ा एक प्रौढ़ मसीही भाई को रजिस्ट्रेशन के फौरन बाद, राज्य घर में शादी का भाषण देने के लिए कह सकता है। यह भाई अपने भाषण में मेहमानों को बताएगा कि यह जोड़ा अभी-अभी रजिस्ट्रेशन करके शादी कर चुका है। शादी की शपथ के सिलसिले में जो कदम उठाए जाने हैं, वे पैराग्राफ 10 और उसके फुटनोट के मुताबिक होने चाहिए। राज्य घर में हाज़िर सभी इस जोड़े की खुशी में शरीक होंगे और परमेश्‍वर के वचन से दी जानेवाली सलाहों से फायदा पाएँगे।—श्रेष्ठगीत 3:11.

रिवाज़ के मुताबिक शादी और कानूनी शादी

12. रिवाज़ के मुताबिक शादी करने का क्या मतलब है, और इस तरह शादी करनेवालों को क्या बढ़ावा दिया जाता है?

12 कुछ देशों में लड़का-लड़की, रिवाज़ (या कबीले के कानूनों) के मुताबिक शादी करते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि दो लोग बगैर शादी के एक-साथ रहने लगते हैं। और ना ही हम ऐसी शादी (कॉमन-लॉ मैरिज) की बात कर रहे हैं, जिसमें स्त्री-पुरुष आपस में तय कर लेते हैं कि वे एक-साथ रहेंगे। इस इंतज़ाम को कुछ इलाकों में जायज़ ठहराया जाता है, मगर कुछ इलाकों में इसे शादी नहीं माना जाता है। * मगर हम बात कर रहे हैं ऐसे विवाह की, जिसमें उन रिवाज़ों के मुताबिक शादी की जाती है जिसे कानून और समाज दोनों मान्यता देते हैं। इस तरह की शादी में वधू-मूल्य देना या लेना शामिल हो सकता है, जिसके बाद ही जोड़ा कानूनन और बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक पति-पत्नी कहलाता है। सरकार ऐसी शादियों को कानूनी तौर पर जायज़ ठहराती है। इसके बाद, अकसर ऐसी शादियों को रजिस्टर करना मुमकिन होता है, और तब जाकर शादीशुदा जोड़े को सरकार से शादी का सर्टिफिकेट मिलता है। शादी रजिस्टर करवाने के बाद कोई उनकी शादी की मान्यता पर उँगली नहीं उठा सकता। और अगर पति गुज़र जाता है, तो उसकी जायदाद पर पत्नी और बच्चे का जो हक है, उसे कोई नहीं छीन सकता। इसलिए कलीसिया, रिवाज़ के मुताबिक शादी करनेवालों को बढ़ावा देती है कि वे अपनी शादी जल्द-से-जल्द रजिस्टर करवाएँ। दिलचस्पी की बात है कि मूसा की कानून-व्यवस्था के तहत, शादियों और बच्चों के जन्म को रिकॉर्ड किया जाता था।—मत्ती 1:1-16.

13. रिवाज़ के मुताबिक शादी करने के बाद, शादी का भाषण देने का क्या मकसद होगा?

13 इस तरह रिवाज़ के मुताबिक शादी करने के बाद, एक जोड़ा कानूनन पति-पत्नी कहलाता है। जैसा कि पहले बताया गया है, जो मसीही इस तरीके से शादी करते हैं, वे राज्य घर में शादी का भाषण रखने का चुनाव कर सकते हैं और साथ में शादी की शपथ भी ले सकते हैं। अगर ऐसा किया जाता है, तो भाषण देनेवाला भाई मेहमानों को बताएगा कि देश के कानून के मुताबिक, इस जोड़े की शादी हो चुकी है। इस तरह का भाषण सिर्फ एक ही बार दिया जाना चाहिए। यानी इस मामले में रिवाज़ के मुताबिक शादी, जिसे कानून मान्यता देता है, और बाइबल से दिया जानेवाला शादी का भाषण सिर्फ एक ही बार होता है। अगर शादी के बाद भाषण जितनी जल्दी रखा जाए, हो सके तो उसी दिन, तो इससे समाज में उस मसीही शादी को आदर की बात समझी जाएगी।

14. ऐसे देशों में मसीही क्या कर सकते हैं, जहाँ रिवाज़ के मुताबिक शादी करना और कानूनी शादी करना, दोनों इंतज़ाम जायज़ हैं?

14 कुछ देशों में जहाँ सरकार, रिवाज़ के मुताबिक की गयी शादियों को कानूनी मान्यता देती है, वहाँ पर एक और इंतज़ाम है। वह है कानूनी शादी का। यह शादी आम तौर पर एक सरकारी अधिकारी की मौजूदगी में की जाती है। इसमें शादी की शपथ लेना और रजिस्ट्री पर दस्तखत करना शामिल होता है। कुछ मसीही, रिवाज़ के मुताबिक शादी करने के बजाय कानूनी शादी करना पसंद करते हैं। लेकिन क्योंकि कानून दोनों इंतज़ामों को जायज़ ठहराती है, इसलिए मसीहियों के लिए इनमें से किसी एक तरीके से शादी करना काफी है। पैराग्राफ 9 और 10 में शादी के भाषण और शपथ के बारे में जो जानकारी दी गयी है, वह कानूनी शादी के लिए भी लागू होती है। ज़रूरी बात यह नहीं कि एक जोड़ा किस तरीके से शादी करता है, मगर यह है कि उनकी शादी, परमेश्‍वर और इंसान, दोनों की नज़र में आदर की बात समझी जाए।—लूका 20:25; 1 पतरस 2:13, 14.

शादीशुदा ज़िंदगी में आदर बनाए रखिए

15, 16. शादी के हर पहलू में आदर कैसे दिखाया जाना चाहिए?

15 जब एक फारसी राजा की शादीशुदा ज़िंदगी में समस्या उठी, तो ममूकान नाम के उसके खास सलाहकार ने उसे एक फरमान जारी करने की सलाह दी, ताकि दूसरे शादीशुदा जोड़ों को ऐसी समस्या का सामना न करना पड़े। वह फरमान था: ‘सब पत्नियां अपने अपने पति का आदरमान करें।’ (एस्तेर 1:20) आज अपने पति का आदर करने के लिए मसीही पत्नी को किसी राजा से फरमान पाने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वह खुद अपनी मरज़ी से अपने पति का आदर करना चाहती है। उसी तरह, मसीही पति भी ‘अपनी पत्नी का आदर करता है’ और उसकी प्रशंसा करता है। (1 पतरस 3:7; नीतिवचन 31:11, 30) शादीशुदा ज़िंदगी में आदर दिखाने के लिए कई साल रुकने की ज़रूरत नहीं है। उसे शुरू से ही ज़ाहिर किया जाना चाहिए, जी हाँ, शादी के दिन से ही।

16 शादी के दिन, सिर्फ दूल्हा-दुलहन को ही आदर से पेश नहीं आना चाहिए। शादी का भाषण अगर एक मसीही प्राचीन दे रहा है, तो उसके भाषण में भी आदर झलकना चाहिए। भाषण, शादी के जोड़े को ध्यान में रखकर दिया जाना चाहिए। यह भाषण एक तरह से शादी के बंधन में बँधनेवाले जोड़े का आदर करता है, इसलिए प्राचीन को अपने भाषण में हँसी-मज़ाक नहीं करना चाहिए और ना ही उसमें कथा-कहानियाँ या “दुनियावी बुद्धि” शामिल करनी चाहिए। उसे दूल्हे या दुलहन की ज़ाती ज़िंदगी से जुड़ी ऐसी कोई भी बात नहीं बतानी चाहिए जिससे जोड़े और सुननेवालों को शर्मिंदगी महसूस हो। इसके बजाय, उसे स्नेह के साथ भाषण देने और सबका हौसला बढ़ाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। उसे लोगों का ध्यान, विवाह का बंधन रचनेवाले परमेश्‍वर पर और उसकी बेहतरीन सलाहों पर खींचना चाहिए। जी हाँ, जब प्राचीन अपने भाषण से मौके की गरिमा बनाए रखेगा, तो इससे यहोवा परमेश्‍वर की महिमा होगी।

17. मसीहियों को अपनी शादी के मामले में देश के कानूनों का आदर क्यों करना चाहिए?

17 आपने गौर किया होगा कि इस लेख में कानूनी तौर पर शादी करने के बारे में बहुत सारी जानकारी दी गयी हैं। कुछ बातें शायद आपके इलाके में सीधे-सीधे लागू न हों। फिर भी, हमें इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि यहोवा के साक्षियों की शादियाँ, कैसर की माँगों, यानी देश के कानून के मुताबिक हों। (लूका 20:25) पौलुस ने हमें उकसाया: “हर एक का हक्क चुकाया करो, जिसे कर चाहिए, उसे कर दो; जिसे महसूल चाहिए, उसे महसूल दो; . . . जिस का आदर करना चाहिए उसका आदर करो।” (रोमियों 13:7) जी हाँ, यह बिलकुल सही है कि मसीही अपने शादी के दिन से ही इंसानी सरकार और उसके कानूनों का आदर करें, जिसे परमेश्‍वर ने हम पर अधिकारी ठहराया है।

18. शादी का एक और पहलू क्या है जिस पर ध्यान देना ज़रूरी है, और इस विषय पर ज़्यादा जानकारी हम कहाँ पा सकते हैं?

18 कई मसीही, शादी के बाद दावत रखते हैं। याद कीजिए कि लेख की शुरूआत में हमने पढ़ा कि यीशु भी ऐसी ही एक दावत में हाज़िर था। अगर दूल्हा-दुलहन ऐसी दावत रखते हैं, तो फिर बाइबल की कौन-सी सलाह उनकी मदद कर सकती है, ताकि इस दावत से भी परमेश्‍वर की महिमा हो और उनका और मसीही कलीसिया का नाम खराब न हो? अगला लेख इसी विषय पर चर्चा करेगा। * (w06 10/15)

[फुटनोट]

^ उसी यूनानी शब्द को शादी की दावतों के अलावा, दूसरी दावतों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।—एस्तेर 9:22.

^ यहोवा के साक्षियों की शादियों में 30 मिनट के लिए एक भाषण दिया जाता है जिसका शीर्षक होता है, “शादी जो परमेश्‍वर के सामने आदर के काबिल हो।” यह भाषण बाइबल की बेहतरीन सलाहों पर रोशनी डालता है, जो यहोवा के साक्षियों की किताब, पारिवारिक सुख का रहस्य, और दूसरे साहित्य में दिए गए हैं। यह भाषण, शादी के जोड़े के लिए और हाज़िर सभी लोगों के लिए भी फायदेमंद है।

^ अगर देश का कानून कोई और शपथ लेने की माँग नहीं करता, तो ये शपथ इस्तेमाल किए जाते हैं जो परमेश्‍वर का आदर करती हैं। दूल्हा यह शपथ लेता है: “मैं — [लड़के का नाम] मसीही पतियों के लिए बाइबल में दिए गए नियमों के मुताबिक तुम्हें — [लड़की का नाम] अपनी पत्नी कबूल करता हूँ। और यह भी कबूल करता हूँ कि मैं यहोवा परमेश्‍वर के ठहराए शादी के बंधन में बँधकर तुम्हें आखिरी साँस तक दिलो-जान से प्यार करता रहूँगा।” दुलहन यह शपथ लेती है: “मैं — [लड़की का नाम] मसीही पत्नियों के लिए बाइबल में दिए गए नियमों के मुताबिक तुम्हें — [लड़के का नाम] अपना पति कबूल करती हूँ। और यह भी कबूल करती हूँ कि मैं यहोवा परमेश्‍वर के ठहराए शादी के बंधन में बँधकर तुम्हें आखिरी साँस तक दिलो-जान से प्यार करती रहूँगी और गहरा आदर भी दूँगी।”

^ मई 1, 1962 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 287 पर कॉमन-लॉ मैरिज के सिलसिले में और भी जानकारी दी गयी है।

^ इस अंक के पेज 28 पर दिया लेख “अपने शादी के दिन की खुशी और गरिमा बढ़ाइए” भी देखिए।

क्या आपको याद है?

• हमें शादी से जुड़े कानूनी और आध्यात्मिक पहलुओं पर क्यों ध्यान देना चाहिए?

• अगर दो मसीही कानूनी शादी करते हैं, तो वे उसके फौरन बाद क्या करने का फैसला कर सकते हैं?

• शादी के भाषण, राज्य घर में क्यों दिए जाते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 12 पर तसवीर]

प्राचीन इस्राएलियों की शादी में दूल्हा, दुलहन को अपने या अपने पिता के घर ले आता था