इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

पाठकों के प्रश्‍न

पाठकों के प्रश्‍न

पाठकों के प्रश्‍न

आजकल कहा जा रहा है कि परिवार नियोजन के लिए की गयी नसबन्दी या ऑपरेशन को फिर से बेअसर करवाया जा सकता है। तो क्या एक मसीही के लिए ऐसे परिवार नियोजन के तरीकों का इस्तेमाल करना ठीक होगा?

नसबन्दी या ऑपरेशन कराना परिवार नियोजन का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जानेवाला तरीका बन गया है। कौन इसे अपनाएगा और कौन नहीं, यह इन बातों पर निर्भर करता है कि समाज में इसे किस नज़र से देखा जाता है, उनकी पढ़ाई-लिखाई कितनी हुई है, और इसके बारे में धर्म क्या कहता है। इस मामले में यहोवा के साक्षी परमेश्‍वर के नज़रिए के हिसाब से चलना चाहते हैं, क्योंकि भजनहार की तरह उनकी भी यह इच्छा है: “हे यहोवा, अपने मार्ग में मेरी अगुवाई कर, और . . . मुझ को चौरस [धार्मिकता के] रास्ते पर ले चल।” (भजन २७:११) सो, हमें यह देखना होगा कि नसबंदी और ऑपरेशन करवाने में क्या-क्या शामिल है।

परिवार नियोजन के लिए पुरुषों के ऑपरेशन को नसबंदी कहा जाता है। शुक्राणु-कोष (scrotum) में दो छोटी शुक्र-वाहिनियों या नलियों को काटकर बाँध दिया जाता है। इसे अलग-अलग तरह के ऑपरेशनों द्वारा किया जा सकता है, लेकिन उद्देश्‍य यही होता है कि शुक्राणु-ग्रंथियों में से शुक्राणु बाहर न निकल सकें। स्त्रियों के ऑपरेशन को ट्यूबल लिगेशन या ट्यूबॆक्टमी कहा जाता है। इसमें आम तौर पर डिम्बवाही नलियों को काटकर बाँध दिया जाता है (या दाग़कर) बंद कर दिया जाता है, जो अंडों को अंडाशय से गर्भाशय तक ले जाती हैं।

बहुत अरसे तक यह समझा जाता था कि एक बार यह ऑपरेशन हो गया तो हो गया, उसके बाद उसे फिर से ठीक नहीं किया जा सकता। लेकिन कुछ लोग बाद में पछताये कि उन्होंने यह कदम क्यों उठाया या फिर उनकी परिस्थितियाँ बदल गयीं इसलिए उन्होंने इसे बेअसर करवाने के लिए डॉक्टरों के दरवाज़े खटखटाये। अब ऑपरेशन के लिए खास औज़ार बनने लगे हैं और माइक्रोसर्जरी करना भी संभव हो गया है, इसलिए इन ऑपरेशनों को बेअसर करने की कोशिशों में ज़्यादा सफलता मिलने लगी है। आजकल बहुत जगह यह पढ़ने को मिलता है कि चुनिंदा मरीज़ों की नसबंदी बेअसर करने में ५० से ७० प्रतिशत सफलता मिल सकती है। ऐसा करने के लिए उन छोटी नलियों के सिरे फिर से जोड़ दिये जाते हैं जो पहले काट दिये गये थे। दावा किया जाता है कि स्त्रियों की ट्यूबॆक्टमी को बेअसर करने में ६० से ८० प्रतिशत सफलता मिली है। यह जानकारी पाकर कुछ लोगों ने सोचा है कि ऐसे ऑपरेशनों को अब स्थायी प्रक्रिया समझने की ज़रूरत नहीं। वे मानने लगे हैं कि ऐसे ऑपरेशन भी गर्भ निरोधक गोलियों, कॉनडम और डायाफ्रैम की तरह होते हैं, यानी गर्भ निरोध के ऐसे तरीके जिनका इस्तेमाल रोका जा सकता है यदि गर्भधारण करने की इच्छा हो। लेकिन, कुछ गंभीर बातें भी हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए।

पहली बात कि नसबंदी को बेअसर करना कई चीज़ों पर निर्भर होता है जो इसकी सफलता की संभावना को काफी घटा सकती हैं, जैसे ऑपरेशन के समय नलियों को कितना नुकसान पहुँचा था, नली का कितना बड़ा टुकड़ा काट दिया गया था या उस पर कितना बड़ा निशान पड़ गया है, ऑपरेशन कितने साल पहले करवाया गया था, और यदि वैसॆक्टमी करवायी गयी थी तो पुरुष के शुक्राणु से लड़ने के लिए कहीं प्रतिजीवाणु तो पैदा नहीं हो गये हैं। इस बात को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए कि माइक्रोसर्जरी की सुविधाएँ बहुत से क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं हैं और उसका खर्च व्यक्‍ति की औकात से बाहर हो सकता है। इसलिए, बहुत से लोग जो शायद ऑपरेशन को बेअसर करवाने के लिए बेताब हों, ऐसा नहीं करवा पाएँगे। उनके लिए यह स्थायी है। * तो फिर, नसबंदी को बेअसर करने के जिन आँकड़ों का ज़िक्र ऊपर किया गया है वे असल में सिर्फ किताबी हैं, और बहुत कम लोगों को सफलता हाथ लगी है, और इसलिए इन आँकड़ों पर आँख मूँदकर भरोसा नहीं किया जा सकता।

कुछ आँकड़े सच्चाई को सामने लाते हैं: नसबंदी के बारे में अमरीका में छपे एक लेख में कहा गया कि १२,००० डॉलर खर्च करके नसबंदी को बेअसर करनेवाला ऑपरेशन करवाने के बाद “केवल ६३ प्रतिशत मरीज़ अपनी साथी को गर्भवती कर पाते हैं।” इसके अलावा, सिर्फ “छः प्रतिशत पुरुष नसबंदी को बेअसर करवाने आते हैं।” केंद्रीय यूरोप के बारे में जर्मनी में हुए एक अध्ययन से पता चला कि नसबंदी करवाने के बाद करीब ३ प्रतिशत पुरुषों ने ही उसे बेअसर करवाना चाहा। अब यदि उनमें से आधों का ऑपरेशन सफल हो जाए तो भी इसका अर्थ होगा कि ९८.५ प्रतिशत लोगों की नसबंदी स्थायी रही। और यह संख्या उन देशों में और भी ज़्यादा बड़ी होगी जहाँ बहुत कम या कोई भी माइक्रोसर्जन नहीं हैं।

तो फिर पुरुषों या स्त्रियों की नसबंदी को छोटी बात समझना, मानो यह कोई अस्थायी गर्भ निरोधक हो, सच्चाई को अनदेखा करना हुआ। और सच्चे मसीही को दूसरी भी कई बातों पर विचार करना है।

मुख्य बात यह है कि बच्चे पैदा करने की क्षमता हमारे सृष्टिकर्ता की ओर से एक वरदान है। उसके मूल उद्देश्‍य में यह शामिल था कि परिपूर्ण मनुष्य बच्चे पैदा करके ‘पृथ्वी में भर जाएँ और उसको अपने वश में कर लें।’ (उत्पत्ति १:२८) जलप्रलय के बाद जब पृथ्वी पर सिर्फ आठ लोग बचे थे, तो परमेश्‍वर ने वही आज्ञा दोहरायी। (उत्पत्ति ९:१) परमेश्‍वर ने वह आज्ञा इस्राएल जाति के लिए तो नहीं दोहरायी, लेकिन वे बच्चों को परमेश्‍वर की तरफ से आशीष समझते थे।—१ शमूएल १:१-११; भजन १२८:३.

परमेश्‍वर ने इस्राएल को जो व्यवस्था दी थी, उससे दिखता है कि मनुष्यों का संतान उत्पन्‍न करना परमेश्‍वर की नज़रों में कितना महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, यदि एक विवाहित पुरुष अपने वंश को आगे चलाने के लिए बेटा पैदा करने से पहले मर जाता था, तो उसके भाई को देवर-विवाह करके उसके लिए बेटा पैदा करना था। (व्यवस्थाविवरण २५:५) इस संबंध में और भी ज़्यादा स्पष्ट नियम ऐसी पत्नी के बारे था जो मुठभेड़ में अपने पति की मदद करने की कोशिश करती थी। ऐसा करते समय यदि वह अपने पति के विरोधी के गुप्तांग पकड़ लेती तो उसका हाथ काट डाला जाना था; महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यहाँ परमेश्‍वर ने न तो उस स्त्री और न ही उसके पति के जननांगों के लिए आँख-के-बदले-आँख का नियम लागू किया। (व्यवस्थाविवरण २५:११, १२) यह नियम स्पष्ट रूप से जननांगों के प्रति आदर विकसित करता; इन्हें यूँ ही नष्ट नहीं करना था। *

हम जानते हैं कि मसीही अब इस्राएल की व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, सो व्यवस्थाविवरण २५:११, १२ में दिया गया नियम उन पर लागू नहीं होता। यीशु ने न तो आज्ञा दी और न ही कोई दूसरा संकेत दिया कि उसके चेलों को अवश्‍य ही विवाह करना चाहिए और ज़्यादा-से-ज़्यादा बच्चे पैदा करने चाहिए। यह तय करते समय कि गर्भ निरोध का कोई तरीका इस्तेमाल करें या न करें, अनेक दंपतियों ने इसी बात पर विचार किया होगा। (मत्ती १९:१०-१२) हाँ, प्रेरित पौलुस ने प्रोत्साहन दिया कि विलासी “जवान विधवाएं ब्याह करें; और बच्चे जनें।” (१ तीमुथियुस ५:११-१४) उसने मसीहियों से यह नहीं कहा कि वे बच्चे पैदा करने की अपनी जनन क्षमता को स्वेच्छा से त्याग दें।

अच्छा होगा कि मसीही इन बातों पर विचार करें कि परमेश्‍वर उनकी जनन क्षमता को महत्त्वपूर्ण समझता है। हर दंपति को तय करना है कि वे परिवार नियोजन के उचित तरीके इस्तेमाल करेंगे या नहीं और यदि करेंगे तो कब करेंगे। हाँ, यदि डॉक्टरी रिपोर्टों ने यह पक्का कर दिया हो कि यदि भविष्य में गर्भधारण हुआ तो माँ या बच्चे के स्वास्थ्य को भारी खतरा हो सकता है, यहाँ तक कि मौत की संभावना है तो उन्हें बहुत भारी फैसला करना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में कुछ लोगों ने गर्भधारण से बचने के लिए न चाहते हुए भी ऑपरेशन करवा लिया है जिसका वर्णन पहले किया जा चुका है, ताकि माँ की जान को खतरा न हो (उसके शायद पहले से बच्चे हों) या ऐसा बच्चा न पैदा हो जिसे जानलेवा बीमारी या शारीरिक दुर्बलता हो।

लेकिन ऐसे मसीही जिन्हें ऐसे असामान्य और विशेष जोखिम नहीं है वे निश्‍चित ही ‘समझदारी’ से काम लेना चाहेंगे। साथ ही, वे यह ध्यान में रखते हुए अपने सोच-विचार और कार्यों को ढालेंगे कि परमेश्‍वर जनन क्षमता को महत्त्वपूर्ण समझता है। (१ तीमुथियुस ३:२, NHT; तीतुस १:८; २:२, ५-८) इससे दिखेगा कि वे आध्यात्मिक रूप से प्रौढ़ हैं और शास्त्र में दिये गये सिद्धांतों को समझते हैं। लेकिन, यदि सब को पता चल जाए कि एक मसीही ने लापरवाही से परमेश्‍वर के दृष्टिकोण को अनदेखा किया है तो? क्या दूसरे उसकी प्रतिष्ठा पर शक नहीं करने लगेंगे कि वह अच्छा उदाहरण है और बाइबल के मुताबिक फैसले करता है? हाँ, अगर व्यक्‍ति के नाम पर ऐसा बड़ा धब्बा लग जाए तो इससे एक सेवक के रूप में उसकी योग्यता पर सवाल उठ सकता है कि क्या वह सेवा के विशेषाधिकारों के योग्य है, लेकिन यदि किसी ने अनजाने में यह ऑपरेशन करवाया हो तो यह सवाल नहीं उठेगा।—१ तीमुथियुस ३:७.

[फुटनोट]

^ “ऑपरेशन करके [शुक्रवाहिका] को जोड़ने की कोशिशों में कम-से-कम ४० प्रतिशत सफलता मिली है और इसके कुछ प्रमाण हैं कि माइक्रोसर्जरी की बेहतर तकनीकों का इस्तेमाल करके और ज़्यादा सफलता मिल सकती है। तो भी, वैसॆक्टमी के द्वारा की गयी नसबंदी को स्थायी समझा जाना चाहिए।” (एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका) “ऑपरेशन को स्थायी प्रक्रिया समझा जाना चाहिए। इसे बेअसर बनाने के बारे में मरीज़ ने चाहे कुछ भी क्यों न सुना हो, दोबारा ऑपरेशन करके नलियों को जोड़ना महँगा पड़ता है और सफलता की गारंटी नहीं दी जा सकती। जो स्त्रियाँ ट्यूबेक्टमी को बेअसर करवाती हैं उनके लिए गर्भाशय के बाहर गर्भधारण करने का जोखिम ज़्यादा रहता है।”—कंटॆम्परॆरी ऑब/गाइन, जून १९९८.

^ इसी संबंध में एक और नियम था कि ऐसा कोई पुरुष परमेश्‍वर की सभा में नहीं आ सकता था जिसके जननांग बुरी तरह विकृत हों। (व्यवस्थाविवरण २३:१) लेकिन, शास्त्रवचनों पर अंतर्दृष्टि (अंग्रेज़ी) पुस्तक कहती है कि शायद यह “समलिंगता जैसे अनैतिक कामों के लिए जानबूझकर बधियाकरण से संबंधित हो।” सो इस नियम में गर्भ निरोध के लिए बधियाकरण, या इसी की तरह कुछ और शामिल नहीं था। अंतर्दृष्टि यह भी कहती है: “दिलासा दिलाते हुए यहोवा ने उस समय के बारे में पहले से बताया जब वह नपुंसकों (खोजों) को अपने सेवकों के रूप में स्वीकार करेगा और यदि वे आज्ञाकारी रहे तो उनको ऐसा नाम देगा जो पुत्र-पुत्रियों से कहीं उत्तम होगा। यीशु मसीह ने व्यवस्था को रद्द कर दिया और उसके बाद विश्‍वास रखनेवाले सभी लोग, चाहे पहले उनकी शारीरिक दशा कैसी भी क्यों न हो, या कोई भी स्थिति क्यों न रही हो, परमेश्‍वर के आत्मिक पुत्र बन सकते थे। इस तरह, शारीरिक भेदभाव दूर कर दिये गये थे।—यशा. ५६:४, ५; यूह. १:१२.”